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अमंगल से मंगल

 अमंगल अर्थात मनुष्य के जीवन की वह स्थिति जिसमे मनुष्य अपने जीवन के किसी एक काल  खण्ड  में किसी  विशेष  संकट में पड़कर अपना अपकर्ष देख रहा होता है !!जैसे की  वह  किसी विशेष दुर्घटना  का शिकार हुआ हो अथवा किसी ऐसी स्थिति  में फंस  गया हो ,जिसके कारण उसे अपयश का भागीदार बन ना पड़ा हो !इसके विपरीत मनुष्य जीवन की मांगलिक  स्थिति वह होतीं है,जब वह स्वस्थ ,संपन्न और यशस्वी होकर जीवन जीता है तथा  किसी भी विशेष  अघटित  घटना का   शिकार नहीं बनता !

इस तरह उसके जीवन की ये दोनों स्थितिया दो विपरीत ध्रुवो पर खड़ी होतीहै और प्रायः कभी भी एक दूसरे को उत्त्पन्न करने की वजह नहीं बनती ,परन्तु विधि का विधान विचित्र है और प्रायः सामान्य  बुद्धि से परे भी !इसलिए हमारी परम्परा में अनेक ऐसे उदाहरण है जिनसे  देखने को मिल जाता है कि यधपि व्यक्ति के जीवन में  घटित तो हुआ था अमंगल ,किन्तु उसका जो परिणाम मिला ,वह  मंगलदायक हुआ !दशरथ  चक्रवर्ती सम्राटथे,किन्तु उनके  कोई संतान नहीं थी !एक बार वो शिकार करने वन की और गए !बहुत समय तक जब उन्हें कोई शिकार नहीं मिला तब वे वही जंगल  में  कुछ क्षण विश्राम करने के लिए एक सरोवरके  पास बैठ गए कुछ ही देर में उन्हें लगा कि उस सरोवर के किनारे पेड़ की आड़ में जैसे कोई जानवर पानी पी रहा हो,तो उन्होंने बिना देखे ही उस पर अपना बाण चला दिया !शिकार घायल हुआ  और उसने अपना दम  तोड़  दिया ,पर यह क्या ,शिकार कोई जानवर ना  होकर शांतनु और ज्ञानवानी का पुत्र श्रवणकुमार था !
श्रवण के माता पिता अंधे थे !उन्होंने जब अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुना तो व्यथित होकर राजा दशरथ को श्राप दिया कि  राजन! जिस प्रकार हम अपने पुत्र के  वियोग में अपने प्राण त्याग रहे है ,उसी तरह से तुम्हे  भीअपने पुत्र के वियोग में प्राण त्यागने पड़ेंगे !तब तक राजा पुत्र  विहीन थे ,किन्तु बाद में उन्हें श्रीराम पुत्र रूप में मिले और  उनका  जीवन मांगलिक हो गया !

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