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स्वयं को देखे

व्यक्ति को व्यथित एवं बेचैन  करने वाली मनोवृति अभाव रूप में नहीं,भाव रूप है.!भाव की उत्तेजित अवस्था प्रायः इसलिए होती है कि अन्य लोग क्यों   इन वस्तुओ का उपयोग करते  है ?जबकि वह वस्तु  उसके पास नहीं है!प्रायःमनुष्य इसलिए  दुखी नहीं रहता कि उसके पास भवन,वस्त्र एवम सुविधायुक्त वस्तुए क्यों नहीं है?दूसरोके पास ऎसी वस्तुए क्यों उपलब्ध है,इस तथ्य से व्यक्ति अधिक परेशान रहता है!कुछ लोगो में यह प्रवर्त्ति अधिक विकसित होती है!किसी को  नया वस्त्र ,आभूषण चाहिए !ऐसी अनेकानेक बातें निरन्तर उसके मन में अशांति उत्पन्न किये रहती है!
मेरे एक रिस्तेदार के यहा एक शिक्षित महिला आई!रिश्तेदार की पत्नी अशिक्षित थी !उसके पास कोई ऊँचा विषय बात करने के लिए नहीं था !वह बोली" आपके हाथ खाली है?चूड़िया क्यों नहीं पहनतीं ?मेरी चूड़ियां छह ीतोले की है,सुंदर लगती है ना ?"सुशिक्षित महिला बोली  ,"आजकल इन चूड़ियों का प्रचलन नहीं है !मेरी घड़ी दो सौ पैंतीस रुपये की है ,समय सही देती है देखो !कितनी अच्छी है?
'धनी महिला के मन में बात बैठ गई !शिक्षित महिला के हाथ घड़ी और वह बिना घड़ी !दुसरे दिन ही उससे भी अच्छी घड़ी उसके हाथ में थी!समय तो  देखना आता नहीं था!फिर भी अति प्रसन्न थी!उसका अहम शांत हो चुका  था!भावनाये शांत थी!दूसरो से अच्छे रहे _यह भाव मनुष्य की अशांति ,आंतरिक दुख और ईर्ष्या का कारण  होता है!मन बैचेन रहता है!सब कुछ होते हुए भी मनुष्य अतृप्त रहता है!ईर्ष्या एक छूत से फैलने वाले रोग के समान शीघ्र  विकसित होने वाला मनोभाव है !अभी आप शांत ,गंभीर और प्रसन्न है दूसरे की कोई उत्तम वस्तु देखी और चिंता में जलने लगे !मन मचल उठता है उसे पाने के लिए !
याद रखिये ,आप चाहे सब  कुछ पा लें ,परन्तु फिर भी किसी न किसी वस्तु का अभाव सदा बना ही रहता है!अभाव मानव मस्तिष्क की प्रबलतम कमजोरी है!उत्तम मनुष्य वहीं  है,जो कल्पना के मायाजाल एवं ईर्ष्या जैसे मनोविकार के वश में ना होकर अपनी प्राप्त वस्तुओ का ही सबसे उत्तम उपयोग करता है!स्वयं में काने बनकर दूसरेको अंधा  देखना अनर्थकारी है!अपने साथ भी ईमानदारी से कार्य कीजिए !अपनी ओर भी निहारिये !

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