जीवन में सफलता और असफलता का क्रम चलता रहता है!असफलता कुछ देर के लिए निराश व् हतोत्साहित जरूर कर देती है,लेकिन यह हमें एक नया अवसर भी प्रदान करती है!अतः असफलता को सफलता की पहली सीढ़ी माना जाता है !सफलता का असली आनंद भी असफलता के बाद ही आता है !वही व्यक्ति अपेक्षित एवं मनवांछित सफलता अर्जित कर पाता जो अपनी गलतियों से सबक लेना जानता है!अक़्सर कुछ लोग असफल होने के बाद अपने बचाव के लिए नाना प्रकार के बहाने गढ़ने लग जाते है !मसलन,मै तो गरीब था!मेरे पास तो सुविधाओं की कमी थी!धन के अभाव में अच्छी कोचिंग नहीं ले सका आदि_ इत्यादि ! ऐसे ढेरों बहानो की आड़ में कुछ लोग अपनी असफलता को छिपाने व औरों की नज़रों में सहानुभूति का पात्र बनने में लग जाते है,लेकिन वो इस बात से अंजान रहते है कि असफलता भी एक पड़ाव है और उसका सफलता से बहुत गहरा सरोकार है! !
बहानो के आवरण में अपनी असफलता को छिपाने वाले व्यक्ति न तो स्वयं कभी सफल हो पाते है और न ही किसी लिए प्रेरणा स्रोत बनते है!अपनी असफलता के बाद आंखो से पानी बहाने वाले सफलता के लिए पसीना बहाने की बात से कभी सहमत नहीं होते है!उनका जीवन अंधकार की गुहा सरीखा होकर रह जाता है !असफलता के पीछे सबसे सबसे बड़ा कारण है भटकाव !कितने ही छात्र दिल्ली और कोटा जैसे महानगरों में आईएएस और आईआईटी की परीक्षा की तैयारी करते है ,लेकिन उनमें से अधिकांश इसलिए सफल नहीं हो पाते ,क्योंकि वो दिशा हीन होकर भटक जाते है!यह भटकाव उनको प्रतिदिन झूठे सपनो साकार होने की आस में अपनी मंजिल से दूर करता जाता है !ऐसे लोग अपनी असफलता के लिए प्रायः यह कहते पाये जाते है की आजकल नौकरियां कहा मिल पाती है!अब तो पुरुषार्थ की बजाय लोगों की पहुंच ज्यादा काम आती है!इन गलतफहमियों में जीने वाले न तो असफलता के बाद स्वयं का आकलन करते हैऔर न ही अपने भटकाव को समझ पाते है!सोचिए ,अगर यही धारणा अब्राहम लिंकन और कई अहम् वस्तुओ के आविष्कारक एडीसन ने बना ली होती तो क्या वे आज हमारे लिए मिसाल बन पाते!
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