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संयम का महत्व

 संयम वह गुण है जिसमें व्यक्ति सफलता के शीर्ष को स्पर्श कर सकता है!यह गुण हमारी आत्मिक शक्ति को सबलता प्रदान करता है!यह चारित्रिक परिष्कार का कारक  है !संयमी व्यक्ति के भीतर अथाह सामर्थ्य का  भंडार संग्रहित होता है! संयम का पोषण सद्विचारों एवं  सत्संगति में ही संभव है !अच्छे विचार संयमी प्रभाव में वृद्धि करते है!सत्संगति भी संयम के जन्म का कारक है!अच्छे परिवेश ,भद्रजनोँ  के सामीप्य से  संयम प्राणवान होता है!संयम का गुण  ही तो  इस नश्वर शरीर को  अमरता प्रदान करता है ,क्योंकि संयम व्यक्ति को सद्कार्यो के लिए प्रोत्साहित करता है !यह  नकारात्मकता को पास नहीं भटकने देता !संयम एवं नकारात्मक विचारों का आपस में बैर है!

महात्मा महात्मा गाँधी ने संयम पर अपने विचार रखते हुए कहा था ,'जब साहस के साथ संयम और शिष्टाचार जुड़ जाता है ,तो वह व्यक्ति अनूठा हो जाता है!'अर्थात व्यक्ति में अनूठे पन लिए संयम का होना  आवश्यक है !व्यक्ति में मौलिक विशिष्टता उसके संयम से पोषित होती रहती है!पश्चिमी   विचारक रूसो से जब संयम के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि ,"संयम मनुष्य के जीवन में नयी रोशनी उत्त्पन्न कर देता है !"स्पष्ट है कि संयम में वह शक्ति है जो कि व्यक्ति के जीवन को प्रकाशवान बना सके !
वाणी का संयम मनुष्य को प्रखर बना देता है !वाणी संयम एक तरह से 
वाक् सिद्धि है!जिसने अपनी वाणी को संयमित कर लिया वह व्यक्ति अद्वितिय हो जाता  है !लोग उसकी और आकृष्ट होने लगते है !वहीं इन्द्रिय संयम व्यक्ति की प्रकृति को अजय बना देता है!जितेन्द्रिय व्यक्ति स्वतः संस्कारो की खान में परवर्तित हो जाता है !ऐसे व्यक्तित्व सदैव अनुकरणीय एवं प्रेरणादायी होते है!संयमी जीवनचर्या एक आदर्श जीवन चर्या है !नवयुग का निर्माण संयमी युवा शक्ति के सहयोग से संभव है !किसी भी 
राष्ट्र की युवा पीढ़ी यदि संयमी  है  तो निश्चित ही उसका   सामाजिक  परिवेश पावन  होगा और वह राष्ट्र प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहेगा !

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