नव वर्ष के भी कुछ दिन गुजर गए है !इस दौरान शुरुआत में लिए गए कई संकल्पो ने भी दम तोड़ दिया होगा !आखिर हर साल की यही कहानी क्यों होती है?इससे निपटने के लिए अगर हम इच्छाशक्ति के साथ ही शब्दों की ताकत का भी संज्ञान ले तब बात बन सकती है!बार बार संकल्पो को लेकर निराशा के भाव से पीड़ित लोग अक्सर कठोर रणनीति अपना लेते है !इस कारण वह स्वयं के शत्रु बन जाते है !वे स्वजनित शत्रु संकल्पो की सिद्धि में और अवरोध ही उत्त्पन्न करते है!ऐसे में इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए इस वर्ष कठोर बनने के बजाय शब्दों का प्रयोग कर लचीला बनना सीखे !स्मरण रखे कि सकारात्मक और रचनात्मक नीति हर विपरीत परिस्थिति को सहज बनाकर हमारी राह आसान बना देती है!यह बेहद कारगर नीति है!सकारात्मक शब्दों की ताक़त को आज विश्व के कोने कोने में महसूस किया जा रहा है ! सकारात्मक सोच की रणनीति में यदि लचीले शब्द डाल दिए जाए तो फिर भंगुर लोहा भी टूट जाता है !कोई प्राकृतिक मानवीय आपदा भी ऐसे व्यक्ति को तोड़ नहीं सकती !इसलिए अपने शब्दों पर गौर करे और उन्हें बदलने का प्रयत्न कर
संयम वह गुण है जिसमें व्यक्ति सफलता के शीर्ष को स्पर्श कर सकता है!यह गुण हमारी आत्मिक शक्ति को सबलता प्रदान करता है!यह चारित्रिक परिष्कार का कारक है !संयमी व्यक्ति के भीतर अथाह सामर्थ्य का भंडार संग्रहित होता है! संयम का पोषण सद्विचारों एवं सत्संगति में ही संभव है !अच्छे विचार संयमी प्रभाव में वृद्धि करते है!सत्संगति भी संयम के जन्म का कारक है!अच्छे परिवेश ,भद्रजनोँ के सामीप्य से संयम प्राणवान होता है!संयम का गुण ही तो इस नश्वर शरीर को अमरता प्रदान करता है ,क्योंकि संयम व्यक्ति को सद्कार्यो के लिए प्रोत्साहित करता है !यह नकारात्मकता को पास नहीं भटकने देता !संयम एवं नकारात्मक विचारों का आपस में बैर है! महात्मा महात्मा गाँधी ने संयम पर अपने विचार रखते हुए कहा था ,'जब साहस के साथ संयम और शिष्टाचार जुड़ जाता है ,तो वह व्यक्ति अनूठा हो जाता है!'अर्थात व्यक्ति में अनूठे पन लिए संयम का होना आवश्यक है !व्यक्ति में मौलिक विशिष्टता उसके संयम से पोषित होती रहती है!पश्चिमी विचारक रूसो से जब संयम के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि ,"संयम मनुष्य के जीवन में नयी रोशनी