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Showing posts from September, 2021

शब्दों की शक्ति

  नव वर्ष के भी कुछ दिन गुजर गए है !इस दौरान शुरुआत में लिए गए कई संकल्पो ने भी दम तोड़ दिया होगा  !आखिर हर साल की यही कहानी क्यों होती है?इससे निपटने के लिए अगर हम इच्छाशक्ति के साथ ही शब्दों की ताकत का भी संज्ञान  ले तब बात बन सकती है!बार बार संकल्पो को लेकर निराशा के भाव से पीड़ित लोग अक्सर कठोर  रणनीति अपना लेते है !इस कारण वह स्वयं के शत्रु बन जाते है !वे स्वजनित शत्रु संकल्पो की सिद्धि में और अवरोध ही उत्त्पन्न करते है!ऐसे में इस प्रकार की परिस्थितियों  से बचने के लिए इस वर्ष कठोर बनने के बजाय शब्दों का प्रयोग कर लचीला बनना सीखे !स्मरण रखे कि सकारात्मक और रचनात्मक नीति हर विपरीत परिस्थिति को सहज बनाकर हमारी राह आसान बना देती है!यह बेहद कारगर नीति है!सकारात्मक शब्दों की ताक़त को आज विश्व के कोने कोने में महसूस किया जा रहा है !                                                       सकारात्मक सोच की रणनीति में यदि लचीले शब्द डाल दिए जाए तो फिर भंगुर लोहा भी टूट जाता है !कोई प्राकृतिक मानवीय आपदा भी ऐसे व्यक्ति को तोड़ नहीं सकती !इसलिए अपने शब्दों पर गौर करे और उन्हें बदलने का प्रयत्न  कर

संयम का महत्व

  संयम वह गुण है जिसमें व्यक्ति सफलता के शीर्ष को स्पर्श कर सकता है!यह गुण हमारी आत्मिक शक्ति को सबलता प्रदान करता है!यह चारित्रिक परिष्कार का कारक  है !संयमी व्यक्ति के भीतर अथाह सामर्थ्य का  भंडार संग्रहित होता है! संयम का पोषण सद्विचारों एवं  सत्संगति में ही संभव है !अच्छे विचार संयमी प्रभाव में वृद्धि करते है!सत्संगति भी संयम के जन्म का कारक है!अच्छे परिवेश ,भद्रजनोँ  के सामीप्य से  संयम प्राणवान होता है!संयम का गुण  ही तो  इस नश्वर शरीर को  अमरता प्रदान करता है ,क्योंकि संयम व्यक्ति को सद्कार्यो के लिए प्रोत्साहित करता है !यह  नकारात्मकता को पास नहीं भटकने देता !संयम एवं नकारात्मक विचारों का आपस में बैर है! महात्मा महात्मा गाँधी ने संयम पर अपने विचार रखते हुए कहा था ,'जब साहस के साथ संयम और शिष्टाचार जुड़ जाता है ,तो वह व्यक्ति अनूठा हो जाता है!'अर्थात व्यक्ति में अनूठे पन लिए संयम का होना  आवश्यक है !व्यक्ति में मौलिक विशिष्टता उसके संयम से पोषित होती रहती है!पश्चिमी   विचारक रूसो से जब संयम के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि ,"संयम मनुष्य के जीवन में नयी रोशनी

अमंगल से मंगल

 अमंगल अर्थात मनुष्य के जीवन की वह स्थिति जिसमे मनुष्य अपने जीवन के किसी एक काल  खण्ड  में किसी  विशेष  संकट में पड़कर अपना अपकर्ष देख रहा होता है !!जैसे की  वह  किसी विशेष दुर्घटना  का शिकार हुआ हो अथवा किसी ऐसी स्थिति  में फंस  गया हो ,जिसके कारण उसे अपयश का भागीदार बन ना पड़ा हो !इसके विपरीत मनुष्य जीवन की मांगलिक  स्थिति वह होतीं है,जब वह स्वस्थ ,संपन्न और यशस्वी होकर जीवन जीता है तथा  किसी भी विशेष  अघटित  घटना का   शिकार नहीं बनता ! इस तरह उसके जीवन की ये दोनों स्थितिया दो विपरीत ध्रुवो पर खड़ी होतीहै और प्रायः कभी भी एक दूसरे को उत्त्पन्न करने की वजह नहीं बनती ,परन्तु विधि का विधान विचित्र है और प्रायः सामान्य  बुद्धि से परे भी !इसलिए हमारी परम्परा में अनेक ऐसे उदाहरण है जिनसे  देखने को मिल जाता है कि यधपि व्यक्ति के जीवन में  घटित तो हुआ था अमंगल ,किन्तु उसका जो परिणाम मिला ,वह  मंगलदायक हुआ !दशरथ  चक्रवर्ती सम्राटथे,किन्तु उनके  कोई संतान नहीं थी !एक बार वो शिकार करने वन की और गए !बहुत समय तक जब उन्हें कोई शिकार नहीं मिला तब वे वही जंगल  में  कुछ क्षण विश्राम करने के लिए एक सरोवर

सुधार का संकल्प

   वक्त किसी के लिए नहीं थमता !समय के साथ अपने पड़ाव बदलता रहता है!एक और नये साल ने दस्तक दी है!हालांकि इस पड़ाव परिवर्तन के साथ दैनिक जीवन की वास्तिवकता और चुनौतियां तो नहीं बदलती ,अलबत्ता वक्त की नयी करवट के साथ नई आकांक्षाओ के पंख अवश्य परवान चढ़ते है,जिनमे बेहतरी की उम्मीद बंधी होती है !ऐसे में यदि आप सचमुच नए साल को सार्थक करना चाहते है तो जरूरी है की नए वर्ष की शुरुआत ऐसे करे की पूरा साल अपने पिछले साल की तुलना में नया  बनकर  हमारे जीवन में कुछ नया जोड़े !अन्यथा नये वर्ष के कुछ खास निहितार्थ नहीं रह जायँगे! वस्तुतः नए वर्ष के स्वागत का अर्थ है एक नयी चेतना,नयी ऊर्जा। एक नया  भाव, एक नया  संकल्प ,नया इरादा ,या कुछ ऐसा नया करने की प्रतिज्ञा ,जो अब तक नहीं किया और कुछ ऐसा छोड़ने का भाव कि जिसके साथ चलना मुश्किल हो गया है !ऐसा करके ही हम नए वर्ष का सच्चे अर्थो में स्वागत कर सकते है!नव वर्ष का मूल उद्देश्य हमारी जड़ता को तोड़कर उसे गतिशील बनाना ही है नया  वक्त एकरसता को भंग करके उनमे एक नया रंग भरता है ताकि हमारी आंतरिक ऊर्जा का अपने पूरे उत्साह से उपयोग हो सके !दुर्भाग्य से  नये वर्ष  का ये

स्वयं को देखे

व्यक्ति को व्यथित एवं बेचैन  करने वाली मनोवृति अभाव रूप में नहीं,भाव रूप है.!भाव की उत्तेजित अवस्था प्रायः इसलिए होती है कि अन्य लोग क्यों   इन वस्तुओ का उपयोग करते  है ?जबकि वह वस्तु  उसके पास नहीं है!प्रायःमनुष्य इसलिए  दुखी नहीं रहता कि उसके पास भवन,वस्त्र एवम सुविधायुक्त वस्तुए क्यों नहीं है?दूसरोके पास ऎसी वस्तुए क्यों उपलब्ध है,इस तथ्य से व्यक्ति अधिक परेशान रहता है!कुछ लोगो में यह प्रवर्त्ति अधिक विकसित होती है!किसी को  नया वस्त्र ,आभूषण चाहिए !ऐसी अनेकानेक बातें निरन्तर उसके मन में अशांति उत्पन्न किये रहती है! मेरे एक रिस्तेदार के यहा एक शिक्षित महिला आई!रिश्तेदार की पत्नी अशिक्षित थी !उसके पास कोई ऊँचा विषय बात करने के लिए नहीं था !वह बोली" आपके हाथ खाली है?चूड़िया क्यों नहीं पहनतीं ?मेरी चूड़ियां छह ीतोले की है,सुंदर लगती है ना ?"सुशिक्षित महिला बोली  ,"आजकल इन चूड़ियों का प्रचलन नहीं है !मेरी घड़ी दो सौ पैंतीस रुपये की है ,समय सही देती है देखो !कितनी अच्छी है? 'धनी महिला के मन में बात बैठ गई !शिक्षित महिला के हाथ घड़ी और वह बिना घड़ी !दुसरे दिन ही उससे भी अच्छी

अहितकारी ईर्ष्या

  ईर्ष्या गुणों को   देख नहीं सकती और न ग्रहण कर सकती है !यह उसी व्यक्ति का संहार करती है,जिसके भीतर पनपती है!इससे उपजा द्वेष आत्मा के लिए अहितकार व् आत्म विकास में बाधक है!इससे प्रायः मनुष्य का  विवेक भद्र हो जाता है!जहॉ एक दूसरे के स्वार्थ टकराते है वहा  ईर्ष्या द्वेष की भावना पनपने लगती है!ईर्ष्या से कभी किसी का भला नहीं होता है !इसका अर्थ ही किसी की सफलता से जल कर  अनिस्ट  सोचना है !इस प्रकार दूसरो का अनिस्ट  चाहने में अपनी ही क्षति होतीहै  !भले ही लगे इससे तात्कालिक लाभ हुआ है.परन्तु वास्तव में हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी हानि पहुंचती  है! जिस व्यक्ति का हम बुरा चाहते है उस व्यक्ति को तो पता भी नहीं होता की कोई उसके बारे में कोई   विचार रखता  है! किसी के प्रति ईर्ष्या का विचार आने पर स्वयं सबसे पहले ईर्ष्या करने वाले का ही रक्त जलता है रश्य के बुरे और उसके विचार नकारात्मक होने लगते है !मन अशांत हो जाता है,जिसका असर दिनचर्या पर पड़ता है! जो दूसरों  से ईर्ष्या वश द्वेष भाव रखता है वह स्वयं ही उससे पहले प्रभावित होता है!जब हम जानते है की दूसरो से ईर्ष्या करने पर ,उनका  अनि

असफलता से सबक

  जीवन में सफलता और असफलता का क्रम चलता रहता है!असफलता कुछ देर के लिए निराश व् हतोत्साहित जरूर कर देती है,लेकिन  यह हमें एक नया  अवसर भी प्रदान करती है!अतः असफलता को सफलता की पहली सीढ़ी  माना जाता है !सफलता का असली आनंद भी असफलता के बाद ही आता है !वही व्यक्ति अपेक्षित एवं मनवांछित सफलता अर्जित  कर पाता जो अपनी गलतियों से सबक लेना जानता है!अक़्सर कुछ लोग असफल होने के बाद अपने बचाव के लिए नाना प्रकार के बहाने गढ़ने लग जाते है !मसलन,मै तो गरीब था!मेरे पास तो सुविधाओं की कमी थी!धन के अभाव में अच्छी कोचिंग नहीं ले सका आदि_ इत्यादि ! ऐसे ढेरों बहानो की  आड़ में कुछ लोग अपनी असफलता को छिपाने व औरों की नज़रों में सहानुभूति का पात्र बनने में लग जाते है,लेकिन वो इस बात से अंजान रहते है कि असफलता भी एक पड़ाव  है और उसका सफलता से बहुत गहरा सरोकार है! ! बहानो के आवरण में अपनी असफलता को छिपाने वाले व्यक्ति न तो स्वयं कभी सफल हो पाते  है और न ही किसी लिए प्रेरणा स्रोत बनते है!अपनी असफलता के बाद आंखो से पानी बहाने वाले सफलता के लिए पसीना बहाने की बात से कभी सहमत नहीं होते है!उनका जीवन अंधकार की गुहा सरीखा ह

सफलता का मूल मंत्र

  नदी की धारा के बीच भीमकाय चट्टानों को देखने पर मन में एक प्रश्न  कौंध उठता है! आखिर नदी की धारा  किस प्रकार कठोर चट्टानों को चीरते हुए अपना  रास्ता बना कर अविरल बहती जाती है! लोग यही कहेंगे कि नदी के पानी के बहाव में बेजोड़ ताकत होती है और इससे चट्टाने  टूट जाती है , किन्तु इस प्राकृतिक घटना के इससे  भी अधिक तर्क संगत  उत्तर है !पानी  का तेज़ बहाव निरंतर और ाथक रूप से चट्टान पर  प्रहा र   करता रहता है ! और अंतत;नदी सफल होती है  इसमें मानव के लिए सफलता का एक दर्शन है जो नजर अंदाज़ कर  दिया जाता है मानव का जनम  एक  अद्धभूत और अनोखे जीव के रूप में होता है ,लेकिन  समय के साथ वह कमजोरियों का शिकार होता जाता है! वह  खुद में समाहित अद्धभूत  शक्ति और अपार   सम्भावनाओ के  प्रति  अविश्वास शुरू कर देता है! वह  अंततः अपने जीवन में देखे गए सपनों  को साकार करने के लिए प्रयास   ही करना  छोड़ देता है 1 हाथी  के बच्चे को शुरू में मोटी   जंजीरो से बांधा जाता है वह  उस जंजीर को तोड़कर सवतंत्र होने के लिए जी जान से प्रयास करता है,लेकिन असफल रहता है 1 शिशु हाथी  के जीवन   की यही हार  भविष्य में उसकी   नियति ब